IPO Investing क्या होती है? और इसमें कैसे करें निवेश?

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IPO Investing की प्रक्रिया (Process of IPO)

IPO Investing (Initial Public Offering) फिक्स्ड प्राइस या बुक बिल्डिंग या दोनों तरीकों से पूरा हो सकता है। फिक्स्ड प्राइस मेथड में जिस कीमत पर शेयर पेश किए जाते हैं, वह पहले से तय होती है। बुक बिल्डिंग में शेयरों के लिए कीमत का दायरा तय होता है, जिसके भीतर निवेशकों को बोली लगानी होती है। प्राइस बैंड यानी कीमत का दायरा तय करने और बोली का काम पूरा करने के लिए बुकरनर की मदद ली जाती है। बुकरनर का काम आमतौर पर निवेश बैंक या सिक्योरिटीज के मामले की विशेषज्ञ कोई कंपनी करती है।

Fixed Price Method में 100% अग्रिम भुगतान किया जाता है और आवंटन के बाद राशि लौटाई जाती है, जबकि Book Building Method में आवंटन के बाद भुगतान किया जाता है।

Fixed Price Method में आवंटन का 50% – 2 लाख से नीचे के निवेश के लिए आरक्षित होता है और शेष उच्च राशि वाले निवेशकों के लिए, जबकि Book Building Method में 50% आवंटन (QIB) क्यूआईबी के लिए आरक्षित होता है और छोटे निवेशकों के लिए 35% और शेष बचे हुआ अन्य निवेशकों के लिए आरक्षित होता है

IPO Investing: कैसे तय होती है आईपीओ की कीमत

IPO की शेयर प्राइसिंग कीमत दो तरह से तय होती है:
1.  प्राइस बैंड
2.  फिक्स प्राइसिंग

1. IPO Investing: प्राइस बैंड (Price Band)

ज्यादातर कंपनियां जिन्हें आईपीओ लाने की इजाज़त है, वे अपने शेयरों की कीमत तय कर सकती हैं। लेकिन इन्फ्रास्ट्रक्चर और कुछ दूसरी क्षेत्रों की कंपनियों को SEBI और बैंकों को Reserve Bank (रिजर्व बैंक) से अनुमति लेनी होती है। कंपनी का बोर्ड ऑफ डायरेक्टर बुकरनर के साथ मिलकर प्राइस बैंड तय करता है। भारत में कुल 20 फीसदी प्राइस बैंड की इजाज़त है। इसका मतलब है कि बैंड की अधिकतम सीमा फ्लोर प्राइस से 20 फीसदी से ज्यादा ऊपर नहीं हो सकती है।

2. IPO Investing: फिक्स प्राइसिंग (Fix Pricing)

फिक्स प्राइसिंग पर आईपीओ अब बहुत कम होते हैं। इस प्रक्रिया में कंपनी अपनी परिसंपत्तियों, देनदारियों और हर वित्तीय पहलू का मूल्यांकन करके, Shares का एक निश्चित मूल्य निर्धारित कर देती है। यह मूल्य Issue के पहले दिन से आखरी दिन तक निश्चित (Fixed) होता है, और उसी मूल्य पर शेयर की बिक्री होती है। प्रतिभूतियों की मांग कितनी है, इसका पता Issue के अंतिम दिन ही चलता है। इसके बाद मांग के हिसाब से निर्गमन कर दिया जाता है।

IPO Investing: अंतिम कीमत (Last Price)

बैंड प्राइस तय होने के बाद हम किसी भी कीमत के लिए बोली लगा सकते है। हम कट-ऑफ बोली भी लगा सकते हैं। इसका मतलब है कि अंतिम रूप से कोई भी कीमत तय हो, हम उस प्राइस पर इतने शेयर खरीदेंगे। बोली के बाद कंपनी ऐसी कीमत तय करती है, जहां उन्हें लगता है कि उनके सारे Share बिक जाएंगे।

IPO Investing: आईपीओ की रकम (Capital of IPO)

IPO में हम लोगों द्वारा लगाई गई रकम सीधे कंपनी के पास जाती है। हालांकि, विनिवेश के मामले में आईपीओ से हासिल रकम सरकार के पास जाती है। एक बार इन शेयरों की ट्रेडिंग की इजाज़त मिलने के बाद Share की खरीदने-बेचने से होने वाला मुनाफ़ा और नुकसान शेयर धारक को उठाना होता है। क्वालिफाइड इंस्टीट्यूशन बायर्स (QIB) के पास कंपनी आईपीओ से जुड़ी अन्य जरूरी बातों के बारे में पर्याप्त जानकारी होती है जबकि रीटेल बायर्स कंपनी के बारे में बहुत जानकारी नहीं जुटा पाते।

IPO Investing: आईपीओ पर SEBI की भूमिका

भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड यानि SEBI (Securities and Exchange Board of India) IPO लाने वाली कंपनियों के लिए एक सरकारी रेग्युलेटरी है। यह आईपीओ लाने वाली कंपनियों से नियमों का सख़्ती से पालन करवाती है। यह एक तरह की अनिवार्य शर्त होती है कि कम्पनी अपनी सारी छोटी-बड़ी जानकारी सेबी को देगी। यही नहीं, IPO लाने के बाद सेबी कम्पनी की जांच भी करवाती है, कि उसके द्वारा दी गई जानकारी सही है या नहीं। यानि कम्पनी हर तरह की जानकारी SEBI को देने के लिए बाध्य होती हैं।

IPO Investing: आईपीओ में कैसे करें निवेश

अगर हमें Share Bazaar में भविष्य बनाना है तो हमें आईपीओ की जानकारी अवश्य होनी ही चाहिए। वैसे तो IPO को एक जोखिम भरा Investment माना गया है, क्योंकि इसमें कम्पनी के शेयरों के प्रगति से संबंधित  कोई आंकड़े या जानकारी आम लोगों के पास नहीं होती है, फिर भी जो व्यक्ति पहली बार Share Bazaar में निवेश करता है उसके लिए IPO Investing एक बेहतर विकल्प है। लेकिन इसके लिए हमें कम्पनी के बारे में इंटरनेट पर ज़रुर देख लेना चाहिए आजकल बहुत सारी वेबसाइट हैं जो आने वाले IPO की सारी जानकारी उपलब्ध कराती हैं. और कुछ वेबसाइट हैं जो IPO के बारे में लोगों का रुझान भी बताती हैं.

जब भी हम IPO खरीदने के लिए किसी कंपनी का चयन करते हैं तो हमे कुछ ज़रूरी बातों का ध्यान रखना चाहिए, सबसे पहले हमारा ब्रोकर अच्छा होना चाहिए। कोशिश करें कि ब्रोकर के साथ मिलकर कंपनी का चयन करें। जो कंपनी चुन रहे हैं उससे तीन-चार अन्य कंपनियों की भी तुलना करें। कुछ दिन तक इन सभी कंपनियों की प्रगति को देखने के बाद ही निवेश करें। रेटिंग एजेंसी की राय भी बहुत मायने रखती है। कंपनी के आईपीओ की कीमत भी देखें, बाजार में कंपनी के प्रमोटर की साख देखें और दूसरे निवेशकों से कंपनी के IPO को लेकर जानकारी लेते रहें।

IPO Investing: हमेशा सतर्क रहें

कई बार IPO Investing कि पूरी जानकारी नही होने की वजह से हमें बहुत बार नुकसान उठाना पड़ता  है. इसलिए हमेशा सतर्क रहे, कई बार पुराने निवेशक आईपीओ के जरिए अपने शेयर बेचते हैं, और कुछ मामलों में पुराने निवेशकों के शेयर के साथ-साथ नए शेयर भी पेश करते हैं। आईपीओ निवेशक को पुराने निवेशकों के शेयर बेचने के कारणों को जानना चाहिए। अगर हम चाहते हैं कि यह कारोबार अच्छे से आगे बढ़े और हमें हमेशा लाभ हो तो इस क्षेत्र में आगे बढ़ने से पहले हर छोटी से छोटी बात पर अवश्य ध्यान देना होगा।

धन्यवाद्


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